Sunday, October 16, 2011

इबादत...




उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

उतारो गुम्बद,

समेटो खम्भे,

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

सुकूँ मिल जाए रूह को 

सिर्फ जिसकी एक  झलक पाकर,

उसी के सजदे में सर को झुका दो,

कि वो इबादत भी है और मोहब्बत भी |


तुम्हारे चेहरे में मैंने अपना वो ख़ुदा देखा है .....

Thursday, September 29, 2011

तू है यहीं...















यूँ तो तू चला गया,
किंतु, जाकर भी है यहाँ !
ख्वाबों में,
फर्श पर पड़े कदमों के निशानों में,
है तेरी पायल की छमछम अब भी |
तेरी कोयल सी आवाज़,
आरती के स्वरों में गूँजती है अब भी |
तू नहीं है अब,
किंतु ,
तेरी परछाई चादर की सलवटों में है वहीं |
तू चला गया,
क्यूँ ?
ये राज़ बस तुझे ही पता |
फिर भी तेरे प्यार की कुछ यादें हैं,
जो छूट गईं
यहीं घर पर |



Thursday, September 15, 2011

चाँद उतर आएगा...


सर्फ़ का घोल लेके वो बच्चा हवा में बुलबुले उड़ा रहा था  
कुछ उनमें से फूट जाते थे खुद-ब-खुद
कुछ को वो फोड़ देता था उँगलियाँ चुभाकर
और कुछ उड़कर चले जाते थे
उसकी पहुँच से बहुत दूर 
ऐसा ही एक बुलबुला
जाकर चस्प हो गया था आसमान पर
चाँद की शक्ल में
हर रात छत पर जाके मैं तकता रहता हूँ आकाश को
लगता है उफनता हुआ चाँद भी शायद
बुलबुले सा
लहराता हुआ उतर आएगा मेरी छत पर |

Saturday, September 3, 2011

दस्तूर...

यूँ कट- कटकर लकीरों का मिलना कसूर हो गया,
मिलकर उनसे बिछड़ना तो दस्तूर हो गया II

ज़िंदा रहने को कर दी खर्च साँसें तो मैने,
जिंदगी जीने को उनका होना पर ज़रूर हो गया II

तेरी आँखों ने बातें चंद मेरी आँखों से जो कर ली,
पिए बिन ही मेरी साँसों को तेरा सुरूर हो गया II

ज़रा- ज़रा सा है दिखता तू मेरे महबूब के जैसा,
कहा मैने ये चंदा से तो वो मगरूर हो गया II

चला गया जो तू जल्द उठने की ख्वाहिश मे,
तेरे जाते ही मेरा ख्वाब वो बेनूर हो गया I

Thursday, August 18, 2011

मेरी त्रिवेनियाँ...


1 .  एक को समझाऊँ तो दूसरी रोने लगती है ,
       थक -सा गया हूँ सबको मनाते मनाते ,
       
       ये तमन्नाओं का कटोरा कभी भरता ही नहीं |
 
2 .   मैंने छिपा लिया उन्हें मुट्ठियों में मोती समझकर ,
       तुमने पोंछ दिया हथेली से पानी कहकर ,
      
       या खुदा ! आंसूओं का मुकद्दर भी जुदा-जुदा होता है ?
 
3 .  ना जाने क्या चुभता रहा रात भर आँखों में ,
      मसलते मसलते लाल हो गईं आँखें मेरी ,
      
      सुबह धोईं जो शबनम से बूंदों के साथ चाँद निकला | 
 
4 .  तेरे लिए अग़र बाँध भी दूं सागर को ,
      क्या मिलेगा इन बेकाबू जज़्बातों को कैद कर ,
      
      दरवाज़े से टकराकर लहरें शोर मचाती रहेंगी  |
 
5 .  जाऊं कितना भी दूर तुमसे किसी भी दिशा में ,
      टकरा ही जाता हूँ किसी ना किसी मोड़ पर ,
     
      सच ही कहा है, किसी ने  कि दुनिया गोल है  |
 
6 .  कुछ अरसे पहले तेरे हाथों कि खुशबु रह गई थी हर जगह ,
      वही महक , महकती रहती है आज भी , लफ़्ज़ों में ,
    
      डायरी के पन्नों में बसी यादें अब भी गीली हैं |

Friday, August 5, 2011

अस्तित्व...







देखे हैं कभी तुमने,
पेड़ की शाखों पर वो पत्ते,

हरे-हरे, स्वच्छ, सुंदर, मुस्कुराते,
उस पेड़ से जुड़े होने का एहसास पाते,

उस एहसास के लिए,
खोने में अपना अस्तित्व
ना ज़रा सकुचाते,

पड़ें दरारें चाहे चेहरों पर उनके,
रिश्तों मे दरारें कभी वो ना लाते,

किंतु,

वही पत्ते जब सुख जाते,
किसी काम पेड़ों के जब आ ना पाते,

वही पत्ते उसी पेड़ द्वारा
ज़मीन पर गिरा दिए जाते,

लेते विदा उनसे,
यूँही मुस्कुराते,
सदा मुस्कुराते I

Monday, July 25, 2011

साहस....


आज फिर मैं सुबह के जागने से पहले उठा,
और सूरज से पहले घर से निकल गया  
सफ़र लम्बा है और
मंजिलों तक के फ़ासले जो तय करने हैं |
राहें पथरीली और उबड़ खाबड़ भी हैं तो क्या ?
चाँद पर घर बनाना है तो,
रास्ते में गड्ढे तो मिलेंगे ही !!
चुनौतियाँ भी बरसती रहेंगी ,
पर थकना नहीं है,
हार कर रुकना नहीं है,
बस आँखों में सपने , चेहरे पर मुस्कान
और हाथ में साहस लिए चलते जाना है |
 
तारे शायद सो चुके हैं
आहटें सुनाई नहीं पड़ती ,
पर मुझे अभी जागना है
कल की तैयारी करनी है ,
फिर सफ़र पर जो निकलना है ,
फिर फ़ासले कम करने हैं.......