1 . एक को समझाऊँ तो दूसरी रोने लगती है ,
थक -सा गया हूँ सबको मनाते मनाते ,
ये तमन्नाओं का कटोरा कभी भरता ही नहीं |
2 . मैंने छिपा लिया उन्हें मुट्ठियों में मोती समझकर ,
तुमने पोंछ दिया हथेली से पानी कहकर ,
या खुदा ! आंसूओं का मुकद्दर भी जुदा-जुदा होता है ?
3 . ना जाने क्या चुभता रहा रात भर आँखों में ,
मसलते मसलते लाल हो गईं आँखें मेरी ,
सुबह धोईं जो शबनम से बूंदों के साथ चाँद निकला |
4 . तेरे लिए अग़र बाँध भी दूं सागर को ,
क्या मिलेगा इन बेकाबू जज़्बातों को कैद कर ,
दरवाज़े से टकराकर लहरें शोर मचाती रहेंगी |
5 . जाऊं कितना भी दूर तुमसे किसी भी दिशा में ,
टकरा ही जाता हूँ किसी ना किसी मोड़ पर ,
सच ही कहा है, किसी ने कि दुनिया गोल है |
6 . कुछ अरसे पहले तेरे हाथों कि खुशबु रह गई थी हर जगह ,
वही महक , महकती रहती है आज भी , लफ़्ज़ों में ,
डायरी के पन्नों में बसी यादें अब भी गीली हैं |
वीरेंद्र जी ... गज़ब की त्रिवेनियाँ हैं सभी ... दूसरी वाली .. आंसू वाली तो कमाल है ... अलग अलग मूड को लिखा है आपने .. बहुत लाजवाब ...
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