Thursday, September 29, 2011

तू है यहीं...















यूँ तो तू चला गया,
किंतु, जाकर भी है यहाँ !
ख्वाबों में,
फर्श पर पड़े कदमों के निशानों में,
है तेरी पायल की छमछम अब भी |
तेरी कोयल सी आवाज़,
आरती के स्वरों में गूँजती है अब भी |
तू नहीं है अब,
किंतु ,
तेरी परछाई चादर की सलवटों में है वहीं |
तू चला गया,
क्यूँ ?
ये राज़ बस तुझे ही पता |
फिर भी तेरे प्यार की कुछ यादें हैं,
जो छूट गईं
यहीं घर पर |



2 comments:

  1. प्रभावी रचना..बहुत सुन्दर सार्थक अभिव्यक्ति....

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  2. बहुत ख़ूबसूरत जज्बातों से सजी पोस्ट.....शानदार|


    संजय भास्कर
    आदत....मुस्कुराने की
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com/

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