Sunday, October 16, 2011

इबादत...




उखाड़ दो खूंटे ज़मीन से इबादतगाहों के ,

उतारो गुम्बद,

समेटो खम्भे,

उधेड़ दो सारे मंदिर-मस्जिदों के धागे,

मिट्टी-पत्थरों में ख़ुदा नहीं बसता,

सुकूँ मिल जाए रूह को 

सिर्फ जिसकी एक  झलक पाकर,

उसी के सजदे में सर को झुका दो,

कि वो इबादत भी है और मोहब्बत भी |


तुम्हारे चेहरे में मैंने अपना वो ख़ुदा देखा है .....

1 comment:

  1. बहुत खूब .. पर ऐसा चेहरा हर किसी को कहाँ मिलता है ...

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