देखे हैं कभी तुमने,
पेड़ की शाखों पर वो पत्ते,
हरे-हरे, स्वच्छ, सुंदर, मुस्कुराते,
उस पेड़ से जुड़े होने का एहसास पाते,
उस एहसास के लिए,
खोने में अपना अस्तित्व
ना ज़रा सकुचाते,
पड़ें दरारें चाहे चेहरों पर उनके,
रिश्तों मे दरारें कभी वो ना लाते,
किंतु,
वही पत्ते जब सुख जाते,
किसी काम पेड़ों के जब आ ना पाते,
वही पत्ते उसी पेड़ द्वारा
ज़मीन पर गिरा दिए जाते,
लेते विदा उनसे,
यूँही मुस्कुराते,
सदा मुस्कुराते I
ये जीवन का दस्तूर है ... जो आता है वो जाता भी है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना है वीरेंद्र जी ...